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Articles by एमी पिटरसन

खज़ाने की खोज

गड़ा हुआ खज़ाना। यह एक बच्चे की कहानी की किताब जैसा लगता है। परन्तु एक विलक्ष्ण करोड़पति फॉरेस्ट फेन्न रॉकी माउंटेन्स में कहीं 2 करोड़ मूल्य के जवाहरात और सोने के सन्दूक के छोड़े होने का दावा करते हैं। अनेक लोग इसकी खोज में जा चुके हैं। वास्तव में चार लोगों ने तो इस छिपे हुए धन को खोजने में अपनी जान तक गवाँ दी है।

नीतिवचन का लेखक हमें ठहरने और विचार करने के लिए एक तर्क प्रदान करता है: क्या किसी भी प्रकार का खज़ाना ऐसी खोज के योग्य है? नीतिवचन 4 में एक पिता अपने पुत्र को किस प्रकार उचित रूप से रहने के लिए लिख रहा है, वह सलाह दे रहे है कि किसी भी कीमत पर बुद्धि को खोजना उचित है (पद 7) । वह कहता है कि बुद्धि सम्पूर्ण जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करेगी, हमें लड़खड़ाने से बचाएगी और हमें सम्मान का मुकुट पहनाएगी (पद 8-12) । हज़ारों वर्ष पश्चात, याकूब, यीशु का एक शिष्य भी बुद्धि के महत्व पर बल देता है। वह लिखता है “जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।” जब हम बुद्धि को खोजते हैं, तब हम अपने जीवन में सब प्रकार की भली वस्तुओं को भरपूरी से प्राप्त करते हैं।

बुद्धि की खोज करना अंततः, सब प्रकार की बुद्धि और समझ के स्रोत, परमेश्वर की खोज करना है । और जो बुद्धि ऊपर से आती है, उस गड़े हुए खज़ाने से कहीं अधिक मूल्यवान है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। 

अपनी वास्तविक पहचान को खोजना

मैं कौन हूँ? यह एक प्रश्न है जो मिक इंकपेन द्वारा लिखित बच्चों की एक पुस्तक नथिंग में एक दुखी जानवर पूछता है। एक धूल-धूसरित कोने में छिपा हुआ यह जानवर आने जाने को उसे “नथिंग” कहकर पुकारते हुए सुनता है और सोचता है उसका नाम ही “नथिंग” है।

दूसरे जानवरों से सामना होने पर उसकी याद वापस आती है। नथिंग को याद आता है कि उसकी भी एक पूँछ, मूछें और धारियाँ थीं। परन्तु इसका कोई लाभ नहीं हुआ जब तक उसकी भेंट एक बिल्ली से नहीं हुई, जिसने उसकी सही ओर जाने में और नथिंग को यह याद दिलाने में सहायता की कि वह वास्तव में है कौन: टोबी नामक एक स्टफड कैट। उसके मालिक ने बड़े ही प्रेम के साथ उसे ठीक किया, उसके नए कान, पूँछ, मूछें और धारियाँ सिलीं।

मैं जब कभी भी यह पुस्तक पढ़ती हूँ, तो मैं अपनी पहचान के बारे में सोचने लगती हूँ। मैं कौन हूँ? यूहन्ना, विश्वासियों को लिखते हुए कहता है कि परमेश्वर ने हमें अपनी सन्तान कहा है (1 यूहन्ना 3:1) । हम उस पहचान को पूरी तरह से नहीं समझते, परन्तु जब हम यीशु को देखते हैं, तो हम उसके समान बन जाएँगे (पद 2) । ठीक उस टोबी नामक बिल्ली के समान, हमें उस पहचान में पुनर्स्थापित कर दिया जाएगा, जिसकी इच्छा हमारे लिए रखी गई है, वह पहचान पाप के द्वारा बिगाड़ दी गई थी। अभी हम उस पहचान को आधे हिस्से को समझ सकते हैं और हम एक-दूसरे में परमेश्वर के स्वरूप को पहचान सकते हैं। परन्तु एक दिन, जब हम यीशु को देखेंगे, हम उस पहचान में पूरी तरह से पुनर्स्थापित कर दिए जाएँगे, जिसकी इच्छा परमेश्वर हमारे लिए रखता है। हमें नया बना दिया जाएगा।

दृढ़ प्रेम

“मैं तुमसे प्यार करता हूँ!” मेरे पिता बोले जब मैं कार के दरवाजे को ज़ोर से बंद करके स्कूल की ओर चल दी l मैं छठी कक्षा में थी, और महीनों से हर सुबह एक ही स्थिति थी l स्कूल पहुँचने पर पिता कहते थे, “तुम्हारा दिन अच्छा हो! मैं तुमसे प्यार करता हूँ!” और मैं केवल कहती थी, “अलविदा l” मैं उनसे नाराज़ नहीं थी या उनकी उपेक्षा नहीं करती थी l अपने विचारों में अत्यधिक मशगूल होने के कारण मैं उनके शब्दों पर ध्यान नहीं देती थी l फिर भी, मेरे पिता का प्रेम दृढ़ बना रहा l

परमेश्वर का प्रेम ऐसा ही है – उससे भी अधिक l वह सदा स्थिर रहता है l इस प्रकार के प्रेम के लिए इब्रानी शब्द हेसेद है l पुराना नियम में यह शब्द बार-बार दोहराया गया है, और केवल भजन सहिंता 136 में छब्बीस बार! कोई भी आधुनिक शब्द इसका अर्थ स्पष्ट नहीं कर सकता है; हम इसका अर्थ “दयालुता,” “करुणा,” “दया,” या निष्ठा” लगाते हैं l हेसेद ऐसा प्रेम है जो वाचा प्रतिबद्धता पर आधारित है; प्रेम जो निष्ठावान और विश्वासयोग्य है l परमेश्वर के लोगों द्वारा पाप करने के बावजूद, वह उनसे प्रेम करने में विश्वासयोग्य था l दृढ़ प्रेम परमेश्वर के चरित्र का एक अभिन्न भाग है (निर्गमन 34:6) l

जब मैं बच्ची थी, मैं अपने पिता के प्रेम को अनुदत्त/स्वीकार्य मान लेती थी l कभी-कभी वर्तमान में भी मैं अपने स्वर्गिक पिता के प्रेम के साथ ऐसा ही करती हूँ l मैं परमेश्वर की नहीं सुनती हूँ और उत्तर नहीं देती हूँ l मैं धन्यवादी होना भूल जाती हूँ l फिर भी मैं जानती हूँ कि मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम दृढ़ है – एक सच्चाई जो मेरे पूरे जीवन के लिए एक निश्चित आधार है l

एक मजबूत आधार

पिछली गर्मियों में हम दोनों पति-पत्नी फालिंग वॉटर(Fallingwater) घूमने गए, ग्रामीण पेन्सिल्वेनिया में एक घर जिसे वास्तुकार फ्रैंक लोयड राइट ने 1935 में अभिकल्पित किया था l मैंने ऐसा कभी नहीं देखा है l राइट जैविक/कार्बोनिक रूप से परिदृश्य से उदित होनेवाले घर को बनाना चाहता था, मानो वह वहीं पर विकसित हुआ हो - और उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया l उसने घर को वहाँ मौजूद एक झरने के चारोंओर निर्मित किया, और निकट के चट्टान का किनारा उसके शैली दर्पण (style mirrors) के रूप में l हमारे गाइड ने हमें समझया कि निर्माण किस प्रकार सुरक्षित किया गया है : उसने बताया, "घर का सम्पूर्ण सीधा भाग शिलाखंडों पर आधारित है l"
उसके शब्दों को सुनकर, मैंने यीशु के शब्दों को याद किया जो उसने शिष्यों से कहा था l यीशु ने पहाड़ी उपदेश में उनको बताया कि उसकी शिक्षा उनके जीवनों में निश्चित आधार होगी l यदि वे उसके शब्दों को सुनकर उसका अभ्यास करेंगे, वे किसी भी तूफ़ान का सामना कर पाएंगे l इसके विपरीत, जो सुनकर उसपर नहीं चलेंगे, बालू पर घर बनाने वाले की तरह होंगे (मत्ती 7:24-27) l बाद में, पौलुस ने भी यही बात कही, कि मसीह नींव है, और हमें उसी पर टिकाऊ निर्माण करना है (1 कुरिन्थ्यों 3:11) l
जब हम यीशु की बातें सुनकर उनका अभ्यास करते हैं, हम अपने जीवनों को अटल चट्टान के बुनियाद पर बनाते हैं l शायद हमारे जीवन फालिंग वॉटर(Fallingwater), की तरह, सुन्दर और चट्टान पर टिके रहने वाला हो l

भोली भेड़, अच्छा चरवाहा

मेरा मित्र चाड ने वायोमिंग में एक वर्ष चरवाहे के रूप में बिताया l उसने कहा, "भेड़ें इतनी भोली होती हैं कि वे केवल अपने सामने की ही घास चरती हैं l" अपने सामने का पूरा घास चरने के बाद, वे घास का नया खंड नहीं ढूँढती हैं - वे कचरा खाना आरम्भ कर देंगी!"
हम हँसे, और मैं खुद से सोचने के लिए विवश हुआ कि कितनी बार बाइबल मनुष्यों की तुलना भेड़ से करती है l कोई आश्चर्य नहीं कि हमें चरवाहे की ज़रूरत है l किन्तु इसलिए कि भेड़ें इतनी भोली हैं, किसी भी चरवाहे से काम नहीं बनेगा l भेड़ों को परवाह करनेवाले चरवाहे की ज़रूरत है l जब नबी यहेजकेल ने परमेश्वर के निर्वासित लोगों को, बेबीलोन के बंधुआ, को लिखा, उसने उनकी तुलना भेड़ों से की जिनका नेतृत्व बुरे चरवाहे कर रहे थे l झुण्ड की देखभाल करने की बजाए, इस्राएल के अगुआ उनका शोषण कर रहे थे, उनसे लाभ उठा रहे थे (पद.3) और उनको जंगली पशुओं का आहार होने के लिए छोड़ दे रहे थे (पद.5) l
किन्तु वे आशा रहित नहीं थे l अच्छा चरवाहा, परमेश्वर ने, उनको शोषण करनेवाले अगुओं से छुड़ाने का वादा किया l वह उनको वापस घर लाने, हरा-भरा चारागाह, और विश्राम देने का वादा किया l वह घायलों को चंगा करेगा और खोए हुओं को खोजेगा (पद.11-16) l वह जंगली जानवरों को मिटा देगा, ताकि उसका झुण्ड सुरक्षित रहे (पद.28) l
परमेश्वर के झुण्ड के सदस्यों को कोमल देखभाल और मार्गदर्शन चाहिए l हम ऐसा चरवाहा पाकर कितने धन्य हैं जो हमें हरी चराइयों में ले चलता है! (पद.14) l

सैनिक दल के लिए गीत गाना

दोलोगों को नशीली वस्तुओं की तस्करी में दोषी पाए जाने पर एक दशक से मृत्यु पंक्ति में रखा गया था l जेल में रहते हुए उन्होंने यीशु में परमेश्वर के प्रेम को पहचान लिया, और उनका जीवन रूपांतरित हो गया l जब फायरिंग दल का सामना करने का वक्त आया, उन्होंने प्रभु की प्रार्थना बोलते हुए और “फज़ल अजीब क्या खुशलिहान” गीत गाते हुए   जल्लादों का सामना किया l उन्होंने परमेश्वर में विश्वास करने के कारण, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा असाधारण साहस के साथ मृत्यु का सामना किया l
उन्होंने अपने उद्धारकर्ता द्वारा प्रदत्त विश्वास के नमूना का अनुसरण किया l जब यीशु को अपनी निकट मृत्यु का पता चला, उसने संध्या का कुछ समय अपने मित्रों के साथ गीत गाकर बिताया l यह अद्भुत है कि वह ऐसी स्थिति में गीत गा सकता था, किन्तु उसके द्वारा गाया गया गीत और भी अद्भुत है l उस रात, यीशु और उसके मित्रों ने फसह का भोज खाया, जिसका अंत भजन 113-118 तक की भजनों की श्रृखला से होता है और जिसे हल्लेल, कहा जाता है l उस रात मृत्यु का सामना करते हुए, यीशु ने “मृत्यु की रस्सियाँ” जो उसके चारों और थीं के विषय गाया (भजन 116:3) l फिर भी उसने परमेश्वर के विश्वासयोग्य प्रेम की प्रशंसा की(117:2) और उद्धार के लिए उसको धन्यवाद दिया (118:14) l निश्चित तौर पर उसके क्रुसीकरण से पहले इन भजनों ने उसको दिलासा दिया होगा l
परमेश्वर में उसका भरोसा इतना महान था कि अपनी मृत्यु का सामना करते हुए भी अर्थात् निर्दोष की मृत्यु!-उसने परमेश्वर का प्रेम गाने का चुनाव किया l यीशु के कारण, हम भी भरोसा कर सकते हैं कि जिसका भी हम सामना करते हैं, परमेश्वर हमारे साथ है l

मसीह की सुगंध

मौसम धूल भरा और बहुत गर्म था जब बॉब बस की यात्रा करके अपने घर से बहुत दूर एक शहर पहुँचा l वह उस दिन भर की यात्रा के बाद थक चुका था और धन्यवादित था कि वहाँ रहनेवाले अपने मित्रों के मित्र के साथ रात का भोजन कर सकेगा l उन्होंने उसका स्वागत किया, और तुरन्त उसे आराम महसूस हुआ l उसको आभास हुआ वह घर में, आराम से, सुरक्षित, और सम्मानित है l

बाद में, बॉब को इस अपरिचित स्थान में इतनी शांति मिलने का कारण 2 कुरिन्थियों में मिल गया l प्रेरित पौलुस के अनुसार परमेश्वर का अनुसरण करनेवालों के पास “मसीह की सुगंध” है l “यही बात थी!” बॉब ने खुद से कहा l उसके मेज़बान मसीह “की तरह खुशबूदार” महक रहे थे l

पौलुस जब कहता है कि परमेश्वर अपने लोगों को मसीह में “जय के उत्सव में” लिए फिरता है, और अपने ज्ञान की सुगंध हर जगह फैलाता है, उसका सन्दर्भ प्राचीन संसार की एक प्रथा से थी l विजयी सेना मुख्य सड़क पर मार्च करते समय धूप जलाती थी l उनके समर्थकों के लिए, यह आनंद था l उसी तरह, पौलुस कहता है कि परमेश्वर के लोग विश्वास करनेवालों तक सुगंथ पहुंचाते हैं l यह हम खुद उत्पन्न नहीं करते हैं, किन्तु परमेश्वर देता है जब हम उसका ज्ञान फैलाते हैं l

बॉब मेरे पिता हैं, और वे चालीस वर्ष पूर्व उस शहर को गए थे, किन्तु उसे भूल नहीं पाए l आज भी वह मसीह की तरह सुगन्धित उन लोगों की कहानी बताते फिरते हैं l

एक आशा भरा विलाप

बहामास स्थित नासाऊ का क्लिफ्टन हेरिटेज नेशनल पार्क दुखद युग की याद दिलाता है। पत्थर की सीडियां तट से एक चट्टान पर जाती हैं। अठारहवीं शताब्दी में जहाज द्वारा बहामास लाए गए दास इन्हीं सीडियों से अमानवीय आचरण भरे जीवन में प्रवेश करते थे, यहाँ उनका स्मारक है। देवदार के पेड़ों पर गढ़ी स्त्रियों की मूर्तियाँ हैं जिनपर कोडों के निशान हैं, जो दासों की मातृभूमि और परिवरों की ओर मुंह किए समुद्र को निहार रही हैं।

ये मूर्तियां मुझे संसार में व्याप्त अन्याय और टूटी प्रणालियों का विलाप करने के महत्व की याद दिलाती हैं। विलाप का अर्थ यह नहीं कि हम आशाहीन हैं; परन्तु, यह परमेश्वर के साथ सच्चे होने का तरीका है। इसे मसीहियों की परिचित मुद्रा होना चाहिए; लगभग चालीस  प्रतिशत भजन विलाप के हैं, विलापगीत में परमेश्वर के लोग आक्रमणकारियों  द्वारा शहर के नाश किए जाने पर विलाप करते हैं (3:55)।

विलाप करना दुख की वास्तविकता पर एक उचित प्रतिक्रिया है, जो दुख और परेशानी में हमें परमेश्वर से जोड़ता है। अंततः जब हम अन्याय का विलाप, और स्वयं में और दूसरों में सक्रिय बदलाव की अपेक्षा करते हैं- तो विलाप आशावादी होता है।

नासाउ के मूर्ति-वृक्षों के पार्क का नाम "जेनेसिस" है-विलाप के स्थान को नए आरंभ के स्थान के रूप में जाना जाता है।

परदेशियों द्वारा दूसरे परदेशियों का स्वागत

 

जब हमदोनों पति-पत्नी मेरी ननद के निकट रहने के लिए सिएटल(अमरीकी शहर) गए, हम नहीं जानते थे  कि हम किस जगह रहेंगे या काम करेंगे l एक स्थानीय चर्च ने एक स्थान ढूंढने में हमारी सहायता की : एक किराये का घर जिसमें अनेक सोने के कमरे थे l हम एक सोने का कमरा अपने लिए रखते हुए, दूसरे कमरे अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को दे सकते थे l अगले तीन वर्षों में, हम परदेशी होकर परदेशियों का स्वागत करते रहे : हमने समस्त संसार के लोगों के साथ अपने घर और भोजन को बाँटा l हम और हमारे साथ रहनेवालों ने दर्जनों अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को प्रति शुक्रवार अपने घर में बाइबल अध्ययन के लिए आमंत्रित किया l

परमेश्वर के लोग घर से दूर रहने का अर्थ जानते हैं l सैंकड़ो वर्षों तक, इस्राएली पूरी तौर से  मिस्र में परदेशी और दास थे l लैव्यव्यवस्था 19 में, “अपने माता-पिता का आदर करो” और “चोरी मत करो” (पद.3,11), जैसे परिचित निर्देशों के साथ-साथ परमेश्वर ने प्रभावशाली तरीके से परदेशियों की देखभाल करना याद दिलाया, क्योंकि उन्हें मालुम था कि परदेशी और भयभीत रहने का क्या अर्थ होता है (पद.33-34) l

जबकि हम सब जो आज परमेश्वर के अनुयायी हैं, हमने वस्तुतः निर्वासित जीवन नहीं जीया है, फिर भी हम जानते हैं कि इस पृथ्वी पर “परदेशी” (1 पतरस 2:11) अर्थात् ऐसे लोग जिन्हें परदेशी होने का अनुभव मालूम है क्योंकि उनकी अंतिम निष्ठा एक स्वर्गिक राज्य की है l हमसे पहुनाई करनेवाले समुदाय का निर्माण करने को कहा गया है अर्थात् परदेशी जो परदेशियों को परमेश्वर के परिवार में आमंत्रित करते हैं l हम दोनों पति-पत्नी ने सिएटल में जिस सत्कार शील निमंत्रण का अनुभव किया, उसने हमें इसे दूसरों तक पहुँचाना सिखाया और यह परमेश्वर के परिवार का केंद्र बिंदु है (रोमियों 12:13) l